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ऐसा लगता है कि जैसे हमारा समाज ही बहरा हो गया है?



ऐसा लगता है कि जैसे हमारा समाज ही बहरा हो गया है?


जुलाई सोमवार 20-7-2020


किरण नाई ,वरिष्ठ पत्रकार -अल्पायु एक्सप्रेस


हजारों मरीज बिना इलाज के मर रहे हैं. कई मरीज अस्पताल के बाहर खत्म हो गए. उनके परिवार पूछ रहे हैं कि इस मौत की जिम्मेदारी किसकी है? जवाब देने वाला कोई नहीं है.

एकाध रवीश कुमार चिल्लाता रहता है, लेकिन सुनता कौन है? ऐसा लगता है ​कि जैसे हमारा समाज ही बहरा हो गया है. भारत अब इतना गरीब नहीं रह गया है कि हर अस्पताल में बिस्तर, एंबुलेंस, आक्सीजन वगैरह की व्यवस्था न कर सके. हम सब चलते फिरते मुर्दे हैं. अपनी अपनी बॉलकनी थाली बजाते हुए मर जाने के लिए अभिशप्त हैं.


कुछ डॉक्टर चिल्लाते रह गए कि सुविधाएं नहीं हैं. जो सरकार शुरुआत में उत्सव मना रही थी, अब वह खामोशी से अगले स्टंट के बारे में सोच रही होगी. वे डॉक्टर भी शांत हो चुके हैं. जब कोई सुनने वाला नहीं होता, तो बोलने वाला बोलना बंद कर देता है.

हम सब बोलना बंद कर चुके हैं.

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