बेटी की Online पढ़ाई के लिए गाय को बेचकर खरीदा स्मार्टफोन
जुलाई गुरुवार 23-7-2020
किरण नाई ,वरिष्ठ पत्रकार -अल्पायु एक्सप्रेस
हिमाचल प्रदेश के एक छोटे से गांव गुंबर के रहने वाले कुलदीप को अपनी दूध देती गाय 6 हज़ार में बेंचनी पड़ी। कारण बताया गया - स्कूल आजकल ऑनलाइन क्लासेज ले रहे हैं, ऑनलाइन होम वर्क दे रहे हैं। और घर में स्मार्टफोन न होने की वजह से बेटी पढ़ाई में पिछड़ रही थी ।इसलिए गाय बेचकर स्मार्टफोन खरीदना पड़ा।
( हालांकि अब अफसरों का दावा है कि कुलदीप ने मोबाइल कुछ महीने पहले लिया था। गाय बाद में बेची। लेकिन फिर भी मुद्दा गाय कब बेची इसका नहीं। मुद्दा गरीबी और ऑनलाइन शिक्षा का है )
अगर इसी कहानी को आधार माना जाए तो इस कहानी के दो पहलू हैं। एक तो ये है कि हम ये कह कर बात खत्म करें कि एक गरीब परिवार कितना समर्पित है अपनी बेटी की पढ़ाई के लिए।
और दूसरा ये है कि ऑनलाइन शिक्षा और प्रवेश परीक्षा ने संसाधनों के अभाव में रहने वाले बच्चों के सामने एक नई मुसीबत खड़ी कर दी है। वो बेवजह ही पढ़ाई में पिछड़ रहे हैं।
जिन परिवारों के पास जीवन निर्वाह के लिए संसाधन नहीं है वो अब घर में बच्चों की पढ़ाई के लिए स्मार्टफोन और कंप्यूटर कैसे खरीदें! ऊपर से स्कूल पीपीटी, ऑनलाइन असाइनमेंट ना जाने क्या क्या बच्चों को दे रहे हैं।
इन कारणों की वजह से गरीब और ग्रामीण परिवेश में रहने वाले बच्चे पढ़ाई में पिछड़ने से डर रहे हैं।
और इसी पढ़ाई में पिछड़ जाने के डर से केरल के मालापुरम जिले के वालेनचेरी गांव की कक्षा 9 में पढ़ने वाली एक 14 साल की छात्रा ने 1 जून को आत्महत्या कर ली.
खबरों के मुताबिक, दिहाड़ी पर काम करने वाले उसके पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह ऑनलाइन क्लास के लिए मोबाइल फोन की व्यवस्था कर पाते।
बच्ची पढ़ाई में काफी अच्छी थी लेकिन सुविधाओं के अभाव के कारण पिछड़ जाने के डर से उसने कथित तौर पर आग लगा ली।
बच्ची की आत्महत्या के पीछे भी केवल एक स्मार्टफोन ही नहीं होगा। अतीत में न जाने कितनी निराशाओं का सामना उसने किया होगा। कितने संघर्षों का सामना उसने किया होगा। और लगातार संघर्षों का सामना एक नौवीं कक्षा की बच्ची नहीं कर पाई होगी।
ग़रीबी से आने वाले बच्चों के साथ ये होता है कि उनको सुविधाओं की असमानता के चलते रेस से बाहर होने का डर हमेशा सताता रहता है।
और ये भी उनके साथ होता है जिन्होंने गरीबी के कुचक्र को तोड़ने की कोशिश की होती है। नहीं तो ज़्यादातर तो गरीबी के कुचक्र में ही फंस जाते हैं ।
गरीब क्यों गरीब ही रहता है उसके लिए गरीबी का कुचक्र समझना ज़रूरी है - गरीब होने का अर्थ है कि उन्हें गरीब बस्तियों में रहना पड़ेगा। जिसका अर्थ होता है कि वो बच्चों को स्कूल नहीं भेज पाएंगे। जिसका अर्थ होता है कि न सिर्फ उनको बल्कि उनके बच्चों को भी कम वेतन वाली नौकरियां मिलेंगी या फिर मिलेंगी ही नहीं।
जिसका अर्थ होता है कि वो सदा सदा के लिए गरीब रहेंगे। गरीब होने का एक अर्थ ये भी होता है कि वो घटिया खाना खायेंगे। जिसके कारण उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं होगा या तो विकलांग हो जाएंगे। जिसके फलस्वरूप उनको अच्छी नौकरी नहीं मिलेगी और मिलेगी तो अच्छा वेतन नहीं मिलेगा।
जिस कारण वो हमेशा गरीब ही रहेंगे। जिसका अर्थ है कि ये गरीबी का कुचक्र गरीबी से शुरू होकर गरीबी पर ही ख़त्म हो जाएगा।
और अगर कोई इस कुचक्र को तोड़ना भी चाहता है तो उसको लगातार इतना संघर्ष करना पड़ता है कि कभी कभी उसका नतीजा आत्महत्या में तब्दील हो जाता है। जैसा केरल की बच्ची के साथ हुआ।
सरकार को चाहिए इस कुचक्र को समझे और उनको इससे निकालने की कोशिश करे। और शिक्षा से लेकर बाकी फैसले भी हाशिए पर रह रहे लोगों को ध्यान में रखकर करे। लेकिन "चाहिए" तो बहुत कुछ, ऐसा कुछ होते हुए तो नहीं दिख रहा।
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