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आत्महत्या कर छात्रा ने सुसाइड नोट में लिखा कुछ ऐसा जिसे पढ़ना छात्रों को सरकार के लिए बहुत जरुरी है?


आत्महत्या कर छात्रा ने सुसाइड नोट में लिखा कुछ ऐसा जिसे पढ़ना छात्रों को सरकार के लिए बहुत जरुरी है?


जुलाई बुधवार 22-7-2020


किरण नाई ,वरिष्ठ पत्रकार -अल्पायु एक्सप्रेस


कोटा में आत्महत्या करने वाली छात्रा कृति ने अपने सुसाइड नोट में लिखा था कि .... मैं भारत सरकार और मानव संसाधन मंत्रालय से कहना चाहती हूं कि अगर वो चाहते हैं कि कोई बच्चा न मरे तो जितनी जल्दी हो सके इन कोचिंग संस्थानों को बंद करवा दें, ये कोचिंग छात्रों को खोखला कर देते हैं। पढ़ने का इतना दबाव होता है कि बच्चे बोझ तले दब जाते हैं।

कृति ने लिखा है कि वो कोटा में कई छात्रों को डिप्रेशन और स्ट्रेस से बाहर निकालकर सुसाईड करने से रोकने में सफल हुई लेकिन खुद को नहीं रोक सकी।

बहुत लोगों को विश्वास नहीं होगा कि मेरे जैसी लड़की जिसके 90+ मार्क्स हो वो सुसाइड भी कर सकती है,

लेकिन मैं आपलोगों को समझा नहीं सकती कि मेरे दिमाग और दिल में कितनी नफरत भरी है।


अपनी मां के लिए उसने लिखा- "आपने मेरे बचपन और बच्चा होने का फायदा उठाया और मुझे विज्ञान पसंद करने के लिए मजबूर करती रहीं। मैं भी विज्ञान पढ़ती रहीं ताकि आपको खुश रख सकूं। मैं क्वांटम फिजिक्स और एस्ट्रोफिजिक्स जैसे विषयों को पसंद करने लगी और उसमें ही बीएससी करना चाहती थी लेकिन मैं आपको बता दूं कि मुझे आज भी अंग्रेजी साहित्य और इतिहास बहुत अच्छा लगता है क्योंकि ये मुझे मेरे अंधकार के वक्त में मुझे बाहर निकालते हैं।"

कृति अपनी मां को चेतावनी देती है कि- ‘इस तरह की चालाकी और मजबूर करनेवाली हरकत 11 वीं क्लास में पढ़नेवाली छोटी बहन से मत करना,

वो जो बनना चाहती है और जो पढ़ना चाहती है उसे वो करने देना क्योंकि वो उस काम में सबसे अच्छा कर सकती है जिससे वो प्यार करती है।

इसको पढ़कर मन विचलित हो जाता है कि इस होड़ में हम अपने बच्चों के सपनो को छीन रहे है।


आज हम लोग अपने परिवारों से प्रतिस्पर्धा करने लगे है कि फलां का बेटा-बेटी डॉक्टर बन गया, हमें भी डॉक्टर बनाना है।

फलां की बेटी-बेटा सीकर/कोटा हॉस्टल में है तो हम भी वही पढ़ाएंगे,चाहे उस बच्चे के सपने कुछ भी हो...हम उन्हें अपने सपने थोंप रहे है। आज हमारे स्कूल(कोचिंग संस्थान) बच्चों को परिवारिक रिश्तों का महत्व नही सीखा पा रहे,उन्हें असफलताओं या समस्याओं से लड़ना नही सीखा पा रहे। उनके जहन में सिर्फ एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा के भाव भरे जा रहे है जो जहर बनकर उनकी जिंदगियां लील रहा है।

जो कमजोर है वो आत्महत्या कर रहा है व थोड़ा मजबूत है वो नशे की ओर बढ़ रहा है। जब हमारे बच्चे असफलताओ से टूट जाते है तो उन्हें ये पता ही नही है कि इससे कैसे निपटा जाएं। उनका कोमल हदय इस नाकामी से टूट जाता है इसी वजह से आत्महत्या बढ़ रही है।

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