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आखिर किन-किन कारणों से होता है फेफड़े का कैंसर, वजहों को जानकर जल्द ही शुरू करें उपचार, कोरोना के जान

अगस्त गुरुवार 13-8-2020
किरण नाई ,वरिष्ठ पत्रकार -अल्पायु एक्सप्रेस
नई दिल्ली। भारत में जो सबसे कॉमन कैंसर है वह है लंग यानी फेफड़ों का कैंसर और पूरी दुनिया में कोरोना से मरने वालों में फेफड़ों की समस्याओं से पीड़ित लोग ही हैं। ऐसे में लंग कैंसर के क्या-क्या कारण हैं और किन वजहों से होते हैं, इसके बारे में हर व्यक्ति का जानना जरूरी है। बॉलीवुड एक्टर संजय दत्त को थर्ड स्टेज का लंग कैंसर हुआ है। उन्हें छाती में दर्द और सांस लेने में तकलीफ हो रही थी, जिस कारण से उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। लंग यानी कि फेफड़े हमारे शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंग माने जाते हैं। इसमें कई विभिन्न कारणों से संक्रमण फैल सकता है। कई बार संक्रमण का सही समय पर पता न चल पाना कैंसर का कारण भी बन जाता है। लेकिन उससे पहले यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर लंग कैंसर के होने का कारण क्या है? इसमें धूम्रपान फेफड़े के कैंसर का प्रमुख कारण है। लगभग 80 प्रतिशत फेफड़े के कैंसर से होने वाली मौतें धूम्रपान के कारण होती हैं। वे लोग जो सिगरेट पीकर कैंसर का शिकार बनते हैं, उनमें मरने वालों की संभावना 15 से 30 प्रतिशत अधिक होती है। साथ ही वे लोग जो कैंसर का पता लगने के बाद स्मोकिंग को पूरी तरह से छोड़ देते हैं, वह जल्द ही रिकवर भी हो जाते हैं। इसके अलावा पैसिव स्मोकिंग या सेकंडहैंड स्मोकिंग भी लंग कैंसर का बड़ा कारण है। ये वो प्रकार होता है यानी वे लोग जो स्मोकिंग नहीं भी करते हैं, वह अन्य स्मोकर्स के बीच में रह कर खुद की जान जोखिम में डाल सकते हैं। क्योंकि इस दौरान जब आप उनके पास खड़े हो कर सांस से ले रहे होते हैं, तो शरीर में सिगरेट का धुआं सीधे शरीर के अंदर जाता है। यह धुंआ फेफड़ों के लिए ठीक जहर का काम करता है। एक रिसर्च के मुताबिक दुनिया में हर चौथा इंसान सेकंडहैंड स्मोकिंग का शिकार है। लंग कैंसर के लिए रेडॉन नामक एक प्राकृतिक गैस, जो चट्टानों और मिट्टी में मौजूद यूरेनियम की छोटी मात्रा से पैदा होती है, उससे भी लंक कैंसर की संभावना काफी बढ़ सकती है। कभी-कभार यह इमारतों में भी मौजूद होती है। इसे देखा तो नहीं जा सकता लेकिन इसका आस-पास के वातावरण में होना नुकसानदायक हो सकता है। पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वालों को इस गैस से फेफड़ों में कैंसर की संभावना काफी बढ़ जाती है। वायु प्रदूषण में मौजूद सल्फेट एयरोसॉल, जो कि काफी हद तक ट्रैफिक के धुएं में भी मौजूद रहती है। हालांकि, यह यह धुंआ फेफड़ों पर हल्का प्रभाव डालता है जो कि 1-2 प्रतिशत तक ही है। वहीं, अगर ट्रैफिक के धुएं की बात छोड़ भी दी जाए तो खाना पकाने तथा गर्मी पैदा करने के लिए लकड़ी, गोबर या फसल के अवशेषों को जलाने से होने वाले धुएं भी फेफड़े के कैंसर का कारण बन सकते हैं। सबसे हैरानी की बात ये है कि रेडिएशन के चलते भी फेफड़ों में कैंसर सेल्स पनप सकती हैं। जी हां, वे कैंसर के मरीज जो रेडिएशन रेडिएशन थेरेपी करा रहे होते हैं, उनमें भी यह खतरा मौजूद हो सकता है।