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साहित्यिक चेतना जागृत करने की वकालत!...कमर टूट गई घुरहू की एक कोठरी बनवाने में,नेता जी तो हर साल दो कोठी बनवाते हैं

  • alpayuexpress
  • Jul 19, 2024
  • 3 min read

साहित्यिक चेतना जागृत करने की वकालत!...कमर टूट गई घुरहू की एक कोठरी बनवाने में,नेता जी तो हर साल दो कोठी बनवाते हैं


अमित उपाध्याय पत्रकार यूपी हेड


जुलाई शुक्रवार 19-7-2024

गाजीपुर:- खबर गाज़ीपुर ज़िले से है जहां पर शहर के द प्रेसिडियम इंटरनेशनल स्कूल अष्टभुजी कॉलोनी के सभागार में रचनाधर्मी संगोष्ठी में वक्ताओं और कवि कवित्रियों ने अपने साहित्यिक विचार से लोगों को सरोबार कर दिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. श्रीकांत पाण्डेय ने रचनाकारों का उत्साहवर्धन करते हुए कहा कि रचनाधर्मियों की रचनाओं में समकालीन समाज झांकता है। ऐसी गोष्ठियों में नौ रसों के वैविध्य के साथ-साथ समाज की विभिन्न समस्याओं और उनके संभावित समाधान की झलक दिखती है।

कार्यक्रम की संयोजक कवयित्री पूजा राय ने कहा कि, रचनाकारों को अपने सीमित दायरे से बाहर निकलकर लोगों में साहित्यिक चेतना जागृत करने की वकालत की। उन्होंने काव्यपाठ करते हुए कहा, “अन्दर घुटती आवाज हमेशा अपनी नहीं होती/ आंसू जो आँखों को छोड़ जाते हैं/ किसके हिस्से आयेंगे/ये खुद तय करते हैं/ दुःख के धागे में सुख का मोती/ सिर्फ एक की किस्मत में नहीं पिरोया गया है.”

वरिष्ठ कवि और छंदों के मर्मज्ञ कामेश्वर द्विवेदी ने काव्य पाठ करते हुए कहा – हर कदम कंटकों की बिछी जाल है/ बंधुवर फूल बनकर बिखर जाइए। वहीं कवि हरिशंकर पाण्डेय ने पुत्र-पुत्री के लिए पिता के संघर्षों की याद दिलाई, “असहाय पिता और बेबस पिता/ दिल के हालात खुद जानता है पिता/ सबपे खुशियाँ खुद की वार्ता है पिता/ और हालात से हारता है पिता” सेवानिवृत्त बैंककर्मी और ओज के कवि दिनेश चन्द्र शर्मा ने रचना पढ़ी कि, आपस की रंजिशें फिर बाद में निपट लेने, पहले इन आँधियों का मिलकर सामना करें‌। साहित्य चेतना समाज के संस्थापक वरिष्ठ समाजसेवी अमरनाथ तिवारी ने अपनी रचना “जाऊं तो जाऊं किस देश” पढ़कर अपने देश को ही सर्वोत्तम बताया और उसे हर तरह से संवारने की सीख दी। चिन्तक,विचारक और साहित्यकार माधव कृष्ण ने लोगों को अपनी तय की हुई सीमाओं को तोड़कर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हुए कविता पढ़ी, “हरियाली का मोह छोड़कर अंगारों की राह पकड़ना कहाँ सरल है? अपनी गढ़ी बेड़ियों के बंधन से लड़कर आगे बढ़ना कहाँ सरल है? अनजाने शिकार की खातिर शिकारियों के बीच टहलना कहाँ सरल है? आने वाले कल की खातिर माँ की ममता छोड़ निकलना कहाँ सरल है?” कवयित्री शालिनी श्रीवास्तव ने पढ़ा, “गिरो…/ गिरो कि मग में संवेदना बढ़े/ और पथ में सजगता बढ़े/ बार-बार गिरने से डरते हो क्यों भला/ गिर-गिर उठो, उठकर सम्भलो / फिर आगे तुम बढ़े चलो.“। युवा कवयित्री सलोनी उपाध्याय ने सरस्वती वंदना के बाद एक गंभीर काव्य पाठ करते हुए आज के प्रेमी युगल को प्रेम के गाम्भीर्य में उतरने के लिए व्यंग्यपरक सन्देश दिया, “हे वाग्देवी शारदे अविज्ञता निवार दें/ हूं मोहपाश में फंसीं तू ज्ञान सद्विचार दे।“ और “मन व्याकुल था इस चिंतन में/ किस प्रेमकथा का सार लिखूं/ या लिखूं कुटिलतम सत्य कोई/ या स्वप्नों का श्रंगार लिखूं।।” कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए प्रसिद्ध व्यंग्यकार कवि विजय कुमार ‘मधुरेश’ अपने मुक्तकों से लोगों को गुदगुदाते रहे। अपनी कविता के माध्यम से उन्होंने गंभीर सन्देश दिया, “सबसे अच्छा धंधा है इसीलिए अपनाते है, जगह जगह होता है स्वागत और कमीशन पाते हैं/ एक कोठरी बनवाने में कमर टूट गई घुरहू की, नेता जी तो एक साल में दो कोठी बनवाते है.” द प्रेसिडियम इंटरनेशनल स्कूल के प्रबंध तंत्र ने सभी साहित्यकार विद्वानों और चिंतकों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।

 
 
 

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