वर्तमान राजनीतिक दलों ने टिकट बंटवारे में!...राजपूत वर्ग को किया दरकिनार जिससे राजपूत वर्ग नाराज:-राजकुमार सिंह
आदित्य कुमार सीनियर क्राइम रिपोर्टर
गाजीपुर:- खबर गाजीपुर जिले से है जहां पर अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा युवा गाजीपुर के युवा जिला अध्यक्ष राजकुमार सिंह से पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवाल कि देश में वर्तमान समय में हो रहे लोकसभा चुनाव में राजपूत समाज की भूमिका पर कहा कि आम लोकसभा चुनाव में सभी राजनीतिक दलों ने टिकट बंटवारे में क्षत्रिय समाज को दरकिनार किया है। राजस्थान मध्यप्रदेश बिहार झारखंड सहित उत्तरप्रदेश का राजपूत समाज अब इस उपेक्षा के खिलाफ मुखर होने लगा है। जिसे मनाने के लिए सिर्फ भाजपा आगे आई और राजनाथ सिंह को मान मनौअल के लिये लगा दिया है। किसी जमाने में हिंदुस्तान के मतदान की धुरी कहे जाने वाले क्षत्रिय समाज को जनसंख्या के आधार पर कमतर आंकना राजनीतिक पार्टियों को बहुत भारी पड़ने वाली है। कांग्रेस के लगातार सत्ता पर काबिज रहने का रहस्योद्घाटन में संजय गांधी ब्रिटेन के एक सभा में पत्रकार को जबाब देते हुए गर्वान्वित होकर कहा था कि हमारी कांग्रेस पार्टी अपनी बात सिर्फ राजपूत समाज को बता देती है। राजपूतों की पहुच एक एक घर एक एक झोपड़ी मड़ई, आदिवासी वनवासी और हर समाज के परिवार तक गहरा होता है। उनकी बातों को टालने या न मानने की हिम्मत कोई नही करता है। आज अपने बौद्धिक विकास, सांस्कारिक परिवेश एवं सांस्कृतिक धरोहरों को समेटे क्षत्रिय समाज जनसंख्या के अंधी दौड़ में पीछे रह गया है। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में संख्या बल को प्रमुखता देने वाले दल आज क्षत्रिय समाज को उनकी मतदाता संख्या के आधार पर आंक रहे है। देश की आजादी के बाद राष्ट्र निर्माण के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने वाला राजपूत आज भी राष्ट्र के सत्ता निर्माण की काबिलियत रखता है।
भारत में वामपंथ के उभार और इस्लामिक चरमपंथ ने क्षत्रियों को सिनेमा और छद्म लेखनी के माध्यम से क्रूर सामाजिक छवि बना दी है। समाज के अन्य वर्गों के सभी हालातों का जिम्मेदार क्षत्रियों को बताया जाने लगा । जबकि राजपूतों ने सर्व समाज की रक्षा सुरक्षा के लिए सदैव अपना और अपनों का बलिदान दिया है। आज भी भारत के इतिहास से राजपूतों के चैप्टर निकाल दिए जाएं तो कुछ पन्ने ही शेष बचेंगे। हिंदुस्तान के साख और रसूख में राजपूतों का बहुत योगदान रहा है। जिसे वर्तमान समाज को भूलना बहुत महंगा पड़ सकता है। भारत अपने जिस पुराने गौरव की ओर लौट रहा है उसमें राजपूतों की भागीदारी नितांत आवश्यक है।
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