महावीर चक्र विजेता की शहादत दिवस!...जिले के अधिकारी और शासन प्रशासन के लोग अब शहीद के शहादत और उनके
- alpayuexpress
- Nov 22, 2023
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महावीर चक्र विजेता की शहादत दिवस!...जिले के अधिकारी और शासन प्रशासन के लोग अब शहीद के शहादत और उनके परिवार को भूल चुके हैं

आदित्य कुमार सीनियर क्राइम रिपोर्टर
गाजीपुर। खबर गाजीपुर जिले से है जहां पर सेना का दूसरा सर्वोच्च सम्मान महावीर चक्र विजेता शहीद रामउग्रह पांडे का 52 वा शहादत दिवस 23 नवंबर को जखनिया सहित पैतृक गांव एमावंशी स्थित पार्क में मनाया जायेगा। मालूम हो कि महावीर चक्र विजेता की शहादत दिवस धूमधाम से मनाई जाती रही लेकिन इस बार बेहद सादगी के साथ पैतृक गांव एमावंशी में शहीद की इकलौती दोनो आंख से दिव्यांग बेटी सुनीता पांडे अपने परिवार के साथ माल्यार्पण कर मनाएगी। मालूम होगी सन 1971 में भारत-पाकिस्तान के युद्ध में पाकिस्तान के तीन बैंकर को लांस नायक रामउग्रह पांडे अपने बटालियन का हौसला बढ़ाते हुए तीन बंकरों को ध्वस्त कर दिया ।जिसके बाद दुश्मन के हौसला पस्त हो गई और अपने कदम को पीछे समेटने लगे तथा दूसरे मोर्चे से दुश्मन गोला दागने लगे तभी लांचर से दुश्मनों के बंकर को भी ध्वस्त कर दिया।

दुश्मनों के हाथ गोला गिरने से वीरगति को प्राप्त हो गए। उनको मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। शहीद की इकलौती दोनो आंख से दिव्यांग बेटी सुनीता पांडे ने अपने पिता को याद करते हुए फफक कर रो पड़ी और मीडिया से मुखातिब होकर उन्होंने अपने पीड़ा को दर्शाते हुए बताया की सन 1999 तत्कालीन डीएम राजन शुक्ला ने मेरे शहीद पिता के दो बीघा पैतृक भूमि में से डेढ़ बीघा में शहीद पार्क स्थापित करके प्रतिमा सहित स्तूप और बाउंड्री तो बनवा दिया लेकिन उन्होंने मेरी मां श्यामा देवी को यह आश्वासन दिया था कि उनको दो बीघा भूमि अन्य जगह दे देंगे लेकिन आज तक कितने वर्षों बीत जाने के बाद भी जमीन तो नहीं मिली ,किसी तरह आधे बीघे जमीन पर खेती करके अपना जीविका का चलती हैं। शहीद की इकलौती दिव्यांग बेटी सुनीता पांडे के तीन पुत्र हैं जो धर्मवीर दुबे 27 वर्ष दिल्ली में प्राइवेट जॉब करते हैं। दूसरे नंबर पर हैं कर्मवीर दुबे यह भी दिल्ली में प्राइवेट जॉब करते हैं। सबसे छोटे बेटे सत्यवीर दुबे 13 वर्ष गांव में रहकर अपने माता सुनीता देवी का ख्याल और पढ़ाई-लिखाई करते हैं। सुनीता देवी का सपना है कि पिताजी तो देश की सेवा करते-करते अपने प्राणों का बलिदान तो दे दिए कम से कम एक बेटे को फौज में नौकरी मिल जाती तो अपने को गौरवान्वित होती । उन्होंने कहा कि सेना द्वारा वर्ष में एक बार बुलाया जाता है सम्मान करते हैं लेकिन जिले के अधिकारी और शासन प्रशासन के लोग अब शहीद के परिवार को भूल चुके हैं। इसके पूर्व भव्य कार्यक्रम हुआ करती थी जिसमे सांसद विधायक सहित जनप्रतिनिधि आते थे लेकिन अब पार्क पर मैं अकेली सहादत दिवस मनाती है।उन्होंने अधिकारियों से पार्क में एक आवास की मांग की थी लेकिन आज तक आवास भी नहीं मिली।पार्क में साफ सफाई,रंगाई पुताई, लाइट ,पेयजल सहित अन्य कार्य नही हुए।
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