पूर्व शोध प्रस्तुत संगोष्ठी का आयोजन!... उगाए ओएस्टर मशरूम उत्पादन से किसानों की दोगुनी होगी आय, रिसर्च हुई पूरी
किरण नाई वरिष्ठ पत्रकार
गाजीपुर। खबर गाजीपुर जिले से है जहां पर जिले के पीजी कॉलेज में अनुसंधान एवं विकास प्रकोष्ठ तथा विभागीय शोध समिति के तत्वावधान में पूर्व शोध प्रस्तुत संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें पादप रोग विज्ञान विभाग के शोधार्थी दीपक कन्नौजिया ने ‘विंध्याचल भू-भाग के वनोत्पाद एवं पोषण मूल्यों के साथ पादप परजीवी सूत्र कृमियों को प्रतिबंधित करने की योग्यता के लिए प्लूरोटस प्रजातियों का अध्ययन’ विषयक शोध प्रबंध प्रस्तुत किया। दीपक ने बताया कि मशरूम उत्पादन हेतु फसलों के अवशेष जैसे गेंहू का भूसा, धान का पुआल, मक्का के तने, गन्ने की खोई आदि का प्रयोग किया है। किसान इसे बेकार समझकर अपने खेत में जला देते है या फेंक देते हैं। कहा कि मशरूम उत्पादन की आयस्टर विधि में फसलों के इन अवशेषों को प्रयोग में लाकर मशरूम उत्पादन किया जाता है। बताया कि यदि किसान मशरूम उत्पादन की इस विधि को अपनाते हैं तो अपनी आय दोगुनी कर सकते हैं। सरकार भी किसानों की दोगुनी आय के लिए प्रयासरत है। कहा कि किसानों व युवाओं को इससे रोजगार मिलेगा। दीपक ने बताया कि प्रथम उपज 25 से 27 दिनों के भीतर ही मिलनी शुरू हो जाती है। ओएस्टर की विभिन्न प्रजातियों में से प्लूरोटस ऑस्ट्रियाटस सबसे अच्छी उत्पादन करने वाली प्रजाति है। इसके एक बैग से प्रथम उत्पादन में लगभग 394.66 ग्राम मशरूम प्राप्त हुआ। दूसरी उपज 35 दिन में, तीसरी उपज 45वें दिन से और चौथी उपज 60वें दिन में मिल जाती है। बताया कि मशरूम उत्पादन की ये तकनीक बहुत प्रभावशाली है। इसके बाद समिति व प्राचार्य प्रो. डॉ राघवेन्द्र कुमार पाण्डेय ने शोध प्रबंध को विश्वविद्यालय में जमा करने की संस्तुति प्रदान की। इस मौके पर प्रकोष्ठ के संयोजक प्रो. डॉ जी सिंह, मुख्य नियंता प्रो. डॉ एसडी सिंह परिहार, शोध निदेशक डॉ. योगेश कुमार, पादप रोग विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ सत्येंद्र नाथ सिंह, प्रो. डॉ. अरुण कुमार यादव, डॉ रामदुलारे, डॉ कृष्ण कुमार पटेल, डॉ हरेंद्र सिंह, डॉ रविशेखर सिंह आदि रहे।
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